प्रथम खंड
:
18.
प्रथम सत्याग्रही कैदी
अथक परिश्रम करने के बाद भी जब एशियाटिक ऑफिस को 500 से अधिक नाम नहीं मिल
सके, तो एशियाटिक विभाग के अधिकारी इस निर्णय पर आए कि किसी न किसी
हिंदुस्तानी को गिरफ्तार करना चाहिए। पाठक जर्मिस्टन के नाम से परिचित हैं।
वहाँ बहुत से हिंदुस्तानी रहते थे। उनमें से एक रामसुंदर पंडित भी था। वह
दिखने में बहादुर और वाचाल था। उसे कुछ संस्कृत श्लोक भी कंठस्थ थे। उत्तर
भारत का होने से तुलसीदास की रामायण के दोहे-चौपाई तो वह जानता ही था। और
पंडित कहलाने के कारण लोगों में उसकी थोड़ी प्रतिष्ठा भी थी। उसने जगह जगह
भाषण दिए। अपने भाषणों को वह खूब जोशीले बना सकता था। जर्मिस्टन के कुछ
विघ्न-संतोषी हिंदुस्तानियों ने एशियाटिक ऑफिस से कहा कि यदि रामसुंदर पंडित
को गिरफ्तार कर लिया जाए, तो जर्मिस्टन के बहुत से हिंदुस्तानी एशियाटिक
ऑफिस से परवाने ले लेंगे। उस ऑफिस का अधिकारी रामसुंदर पंडित को पकड़ने के
प्रलोभन से अपने को रोक नहीं सका। रामसुंदर पंडित गिरफ्तार कर लिया गया। इस
तरह का यह पहला ही मुकदमा होने से सरकार और हिंदुस्तानी कौम में बड़ी खलबली
मच गई। जिस रामसुंदर पंडित को कल तक केवल जर्मिस्टन ही जानता था, उसे एक क्षण
में सारा दक्षिण अफ्रीका जानने लग गया। जिस प्रकार किसी महापुरुष पर मुकदमा
चलता है और वह सब लोगों की दृष्टि अपनी ओर खींच लेता है, उसी तरह सबकी नजर
रामसुंदर पंडित की ओर लग गई। सरकार के लिए शांति की रक्षा का किसी भी तरह का
बंदोबस्त करना जरूरी नहीं था, फिर भी उसने ऐसा बंदोबस्त किया। अदालत में भी
रामसुंदर को साधारण अपराधी न मानकर हिंदुस्तानी कौम का प्रतिनिधि माना गया और
उसके साथ आदर का व्यवहार किया गया। अदालत उत्सुक हिंदुस्तानियों से खचाखच
भर गई थी। रामसुंदर को एक मास की सादी कैद मिली। उसे जोहानिसबर्ग की जेल में
रखा गया था। वहाँ यूरोपियन वार्ड में एक अलग कमरा उसे दिया गया था। लोग बिना
किसी कठिनाई के उससे मिल सकते थे। उसे बाहर से भोजन प्राप्त करने की इजाजत दी
गई थी और कौम की ओर से हमेशा उसे सुंदर भोजन बनाकर भेजा जाता था। उसकी हर एक
इच्छा पूरी की जाती थी। जिस दिन उसे जेल की सजा मिली वह दिन कौम ने बड़ी
धूमधाम से मनाया। कौम का एक भी आदमी उसके जेल जाने से निराश नहीं हुआ, बल्कि
सारी कौम का उत्साह और जोश बढ़ गया...
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