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धारावाहिक प्रस्तुति (5 अप्रैल 2019), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
मोहनदास करमचंद गांधी

प्रथम खंड : 18. प्रथम सत्‍याग्रही कैदी

अथक परिश्रम करने के बाद भी जब एशियाटिक ऑफिस को 500 से अधिक नाम नहीं मिल सके, तो एशियाटिक विभाग के अधिकारी इस निर्णय पर आए कि किसी न किसी हिंदुस्‍तानी को गिरफ्तार करना चाहिए। पाठक जर्मिस्‍टन के नाम से परिचित हैं। वहाँ बहुत से हिंदुस्‍तानी रहते थे। उनमें से एक रामसुंदर पंडित भी था। वह दिखने में बहादुर और वाचाल था। उसे कुछ संस्‍कृत श्‍लोक भी कंठस्‍थ थे। उत्तर भारत का होने से तुलसीदास की रामायण के दोहे-चौपाई तो वह जानता ही था। और पंडित कहलाने के कारण लोगों में उसकी थोड़ी प्रतिष्‍ठा भी थी। उसने जगह जगह भाषण दिए। अपने भाषणों को वह खूब जोशीले बना सकता था। जर्मिस्‍टन के कुछ विघ्‍न-संतोषी हिंदुस्‍तानियों ने एशियाटिक ऑफिस से कहा कि यदि रामसुंदर पंडित को गिरफ्तार कर लिया जाए, तो जर्मिस्‍टन के बहुत से हिंदुस्‍तानी एशियाटिक ऑफिस से परवाने ले लेंगे। उस ऑफिस का अधिकारी रामसुंदर पंडित को पकड़ने के प्रलोभन से अपने को रोक नहीं सका। रामसुंदर पंडित गिरफ्तार कर लिया गया। इस तरह का यह पहला ही मुकदमा होने से सरकार और हिंदुस्‍तानी कौम में बड़ी खलबली मच गई। जिस रामसुंदर पंडित को कल तक केवल जर्मिस्‍टन ही जानता था, उसे एक क्षण में सारा दक्षिण अफ्रीका जानने लग गया। जिस प्रकार किसी महापुरुष पर मुकदमा चलता है और वह सब लोगों की दृष्टि अपनी ओर खींच लेता है, उसी तरह सबकी नजर रामसुंदर पंडित की ओर लग गई। सरकार के लिए शांति की रक्षा का किसी भी तरह का बंदोबस्‍त करना जरूरी नहीं था, फिर भी उसने ऐसा बंदोबस्‍त किया। अदालत में भी रामसुंदर को साधारण अपराधी न मानकर हिंदुस्‍तानी कौम का प्रतिनिधि माना गया और उसके साथ आदर का व्‍यवहार किया गया। अदालत उत्‍सुक हिंदुस्‍तानियों से खचाखच भर गई थी। रामसुंदर को एक मास की सादी कैद मिली। उसे जोहानिसबर्ग की जेल में रखा गया था। वहाँ यूरोपियन वार्ड में एक अलग कमरा उसे दिया गया था। लोग बिना किसी कठिनाई के उससे मिल सकते थे। उसे बाहर से भोजन प्राप्‍त करने की इजाजत दी गई थी और कौम की ओर से हमेशा उसे सुंदर भोजन बनाकर भेजा जाता था। उसकी हर एक इच्‍छा पूरी की जाती थी। जिस दिन उसे जेल की सजा मिली वह दिन कौम ने बड़ी धूमधाम से मनाया। कौम का एक भी आदमी उसके जेल जाने से निराश नहीं हुआ, बल्कि सारी कौम का उत्‍साह और जोश बढ़ गया...

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आठ कहानियाँ
हरियश राय

हरियश राय हाशिए पर छूट जा रहे उन चरित्रों की कहानियाँ कहते हैं जो विकास की इस आँधी में अपनी जड़ों से उखड़ गए हैं। तभी उनकी कहानियों में पारिवारिक दबाव के चलते जमीन बेच देने के बावजूद हर पल उस जमीन के अभाव को जी रहा बूढ़ा है, जीवन में कुछ बड़ा करने की आकांक्षा पाले कोई प्रतिभाशाली बच्चा है, आर्थिक अभाव और रोजमर्रा की परेशानियों के चलते उसकी आकांक्षा का गला घोंट देने वाला पिता है, अपने ही पोतों की आया या नौकर में बदल जाने वाले बुजुर्ग हैं या कि कबाड़ खरीदने का काम करने वाला कोई दिहाड़ी मजदूर है जो बेवजह लोगों के शक-शुबहे का शिकार होता है। पीड़ा से भरे और भी बहुतेरे चरित्र उनकी कहनियों में धड़कते हैं। यह अलग बात है कि जब उन्हें मौका मिलता है तो वे कुछ इस कदर हिसाब बराबर करते हैं कि हम देखते ही रह जाते हैं। इस क्रम में वे धर्म, जाति या वर्गीय पूर्वाग्रहों को भी अनायास ही ध्वस्त करते जाते हैं।

विशेष
रविरंजन
रामविलास शर्मा और अमृतलाल नागर की दोस्ती
आशुतोष कुमार पांडेय
सुरेंद्र चौधरी और प्रगतिशील आंदोलन की कथा आलोचना

विमर्श
सर्वेश सिंह
आधुनिक कथा-भाषा
असीम अग्रवाल
प्रवासी कहानी : पुनरावलोकन की आवश्यकता

समीक्षा
अवंतिका शुक्ल
बदलाव रचती स्त्रियाँ
यदुवंश यादव
‘मुर्दहिया’ के रास्ते से गुजरना
जगन्नाथ दुबे
स्त्री चिंतन बरास्ते गूँगे इतिहासों की सरहदों पर

कविताएँ
सुरेंद्र स्निग्ध
मनोज तिवारी

देशांतर - कहानियाँ
जैक लंडन
वह चिनागो
एक तीली आग
आबिदा रहमान
ज़र्द पत्तों का बन!
मैं गिरवी, मेरा तन गिरवी

संरक्षक
प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र
(कुलपति)

 संपादक
प्रो. अखिलेश कुमार दुबे
फोन - 9412977064
ई-मेल : akhileshdubey67@gmail.com

समन्वयक
अमित कुमार विश्वास
फोन - 09970244359
ई-मेल : amitbishwas2004@gmail.com

संपादकीय सहयोगी
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ISSN 2394-6687

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